28 August 2009

बॉलीवुड के संगीतकार शंकर (शंकर-जयकिशन) का विविध भारती पर साक्षात्कार

(यह साक्षात्कार संभवतः १९७० के दशक के मध्य में रिकोर्ड किया गया था..... संभवतः इस क्लिप में शुरुआत की कुछ बातचीत नहीं है.)



शील कुमार: अच्छा वैसे आप अब तक कितनी फिल्मों में संगीत दे चुके हैं?
शंकर: शीलजी! वैसे दो सौ के करीब हैं मेरे ख़याल से.

शील कुमार: अच्छा इसमें सिल्वर जुबली-गोल्डन जुबली...
शंकर: (हंसते हुए) सिल्वर जुबली का तो मेरे ख़याल से कोई हिसाब ही नहीं होगा.

शील कुमार: शंकरजी आज भी आपके वो जो पुराने गीत हैं वो... जनता के दिलो-दिमाग पर छाए हुए हैं. तो आप अपने ज़माने के संगीत यानी १०-२० साल पुराना संगीत और आज के नए संगीत में क्या फर्क महसूस करते हैं?
शंकर: हाँ मैंने भी शीलजी ये बात देख रहा हूँ, आजकल पुराना म्यूजिक, पुराने गाने बहुत बजते हैं. मेरे ख़याल से शीलजी ये बात ऐसी है कि आजकल के म्यूजिक के मुताल्लिक़ मुझे बुराई तो नहीं करना है, आजकल का म्यूजिक भी अच्छा है. लेकिन क्या है कि आजकल के म्यूजिक में मेरे ख़याल से जो पहले के म्यूजिक, पहले के गानों में जो आत्मा थी, जो आत्मा को छूने वाली बातें थी, जो सच्चाई थी, जो समझ में आने जैसे बोल थे, उनकी धुनें थी, उनका रिदम था, उनकी सिचुएशनें भी थी, और वो चीज़ें शायद इसलिए अच्छी लगती थी, और इसलिए आज शायद फिर से दोबारा कर रहे हैं पुराने गाने, पुराने म्यूजिक को. तो आजकल क्या है इन गानों में शोर-शपाटा और धूम-धड़ाका तो.... कौनसा सुर कहाँ लगना चाहिए, कौन सा सुर किधर लगाना चाहिए, ये मेरे ख़याल से थोड़ा बहुत मिस हो रहा है.

शील कुमार: मतलब कहीं कमी है.
शंकर: कमी है ज़रूर.

शील कुमार: तो नए संगीतकार जो आए हैं या पुराने जो चले आ रहे हैं उनके बारे में आप कुछ उनको कुछ प्रेरणात्मक शब्द संगीत के बारे में आप कहना चाहेंगे
शंकर: नहीं ज़ुरूर है - नए आने चाहिए, नए लोगों के लिए हम तो हमेशा चाहेंगे. जब हम भी एक दिन नए थे तो हमने भी अपने काम के बल से और अपनी बुद्धि के बल से कोशिश कर-कर यहाँ तक पहुंचे हैं. लेकिन हालांकि अभी तो हमको बहुत-कुछ करना है. तो नए आने वालों के लिए तो हमें खुशी है, वो आना चाहिए, लेकिन ये है कि वो कुछ नया काम, नया ढंग, नए स्टाइल से आकर अगर काम करें तो उनके लिए बहुत ज़गह है.

शील कुमार: अच्छा शंकरजी आजकल आप कौनसी नई फिल्म आपकी आने वाली है जिसमें कि आपने कुछ नया संगीत दिया है?
शंकरजी: नहीं ज़ुरूर-ज़ुरूर क्यों नहीं! देखिए अभी हमारी 'दो झूठ' लग रही है. 'दो झूठ' का म्यूजिक आप सुनेंगे ज़ुरूर मुझे उम्मीद है कि लोगों को बहुत पसंद आएगा. और उसके साथ 'संन्यासी' का म्यूजिक और एस्पेशली मैंने राग भैरवी पर बेस किया है.

शील कुमार: तो वो गीत हम दर्शकों को...... (clip ends)


next clip starts.....

गीत: चल संन्यासी मंदिर में...

शील कुमार: शंकरजी! संन्यासी के गीत के बाद मैं चाहूंगा कि आप अपनी ज़बान से इन सवालों के प्यारे-प्यारे जवाब दें. ये पहला सवाल है अनिरुद्ध राजकोट से, लिखते हैं कि मां की ममता और गुरु की शिक्षा - दोनों में से क्या श्रेष्ठ है?
शंकर: शीलजी! मां की ममता तो ममता ही होती है. और बहुत बड़ी ताक़त है मां. और गुरु - गुरु भी बहुत बड़ा होता है. इसलिए कि गुरु ज्ञान देता है. जैसे आपने संगीत में देखा होगा - गुरु बिन कैसे गुण गावे, गुरु न माने तो गुण नहीं आवे.

शील कुमार: अच्छा, अगला सवाल है ये कानपुर से - जीतेन्द्र कुमार. ये पूछते हैं कि जीतेजी मनुष्य की इज्ज़त करने के बजाय मनुष्य मरने के बाद उसकी पूजा क्यों करते हैं?
शंकर: मैं भी यही सोचता हूँ कि जब जिन्दगी में इंसान अच्छा काम करता है, अच्छा नाम करता है, अच्छा काम करके दिखाता है तब उसको कोई इज्ज़त दें, तब उसको भी देखने में कुछ अच्छा लगेगा और उसके घर वालों को भी अच्छा लगेगा. ज़िंदा होते में देना चाहिए लेकिन क्यों नहीं देते, नहीं मालूम. इसलिए कि मनुष्य-मनुष्य में एक जेलस, एक जलन होती है कि जब ज़िंदा होते हैं तब नहीं देते हैं और मरने के बाद इसलिए देते हैं कि चलो अब तो मर गया है उसको दे दो.

शील कुमार: बहुत खूबसूरत! अब देखिए ये भगवती कश्यप ने नई दिल्ली से ये पूछती हैं कि नारी यदि एक बंद लिफाफा है जिसके भावों को पढ़ा नहीं जा सकता, तो पुरुष क्या है?
शंकर: पुरुष तो एक किताब है. कोई भी पढ़ ले!
शील कुमार: अच्छा!
शंकर: लेकिन औरत एक बंद लिफाफा है और उसी के अन्दर उसकी इज्ज़त है. यदि लिफाफा खुल जाए तो फिर कोई इज्ज़त ही नहीं औरत की!

शील कुमार: तो अब आगे बढ़ा जाए, आगे ये सवाल है मोहम्मद सईद का, ये कानपुर से पूछते हैं - इंसान की जिन्दगी में सबसे बड़ा तूफ़ान कब आता है?
शंकर: ये तो शीलजी ऐसा है, जब भी कोई गलत काम करेगा और गलत काम हो रहा हो, तभी वो तूफ़ान आता है. और किस वक़्त भी आ सकता है.
शील कुमार: अच्छा, आपकी जिन्दगी में कभी कोई तूफ़ान आया?
शंकर: शीलजी हमारी जिन्दगी में तो हर वक़्त तूफ़ान आता है. जब भी कोई पिक्चर रिलीज़ होती है, वो हमारे लिए एक बहुत बड़ा तूफ़ान है. लेकिन जब गुज़रे हुए वक़्त को लाना चाहता है आदमी तब हमेशा तूफ़ान ही तूफ़ान होता है. लेकिन मैं ये कहूंगा .... (गीत - 'चलो भूल जाएं....')

No comments:

Post a Comment